प्रेम का मार्ग मस्ती का मार्ग है।
होश का नहीं, बेहोशी का।
खुदी का नहीं, बेखुदी का।
ध्यान का नहीं, लवलीनता का।
जागरूकता का नहीं, तन्मयता का।
यद्यपि प्रेम की जो बेहोशी है
उसके अंतर्गृह में होश का दीया जलता है।
लेकिन उस होश के दीए के लिए
कोई आयोजन नहीं करना होता।
वह तो प्रेम का सहज प्रकाश है,
आयोजना नहीं।
यद्यपि प्रेम के मार्ग पर जो बेखुदी है,
उसमें खुदी तो नहीं होती,पर खुदा जरूर होता है।
छोटा मैं तो मर जाता है, विराट मैं पैदा होता है।
और जिसके जीवन में विराट मैं पैदा हो जाए,
वह छोटे को पकड़े क्यों?वह छुद्र का सहारा क्यों ले?
जो परमात्मा में डूबने का मजा ले ले,
वह अहंकार के तिनकों को पकड़े क्यों,
बचने की चेष्टा क्यों करे?
अहंकार बचने की चेष्टा का नाम है।
निर-अहंकार अपने को खो देने की कला है।
🌹ओशो संतो मगन भया मन मेरा🌹
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Rajneesh Osho