स्वयं को खोजो और स्वयं को पाओ!
परमात्मा के द्वार पर केवल उन्ही का स्वागत है जो स्वयं जैसे है! उस द्वार से राम तो निकल सकते है, लेकिन रामलीला के राम का निकलना संभव नहीं है! और जब भी कोई बाह्य आदर्शो से अनुप्रेरित हो स्वयं को ढालता है, तो वह रामलीला का राम ही बन सकता है! यह दूसरी बात है कि कोई उसमें ज्यादा सफल हो जाता है, कोई कम! लेकिन अंतत: जो जितना ज्यादा सफल है, वह स्वयं से उतनी ही दूर निकल जाता है! रामलीला के रामों की सफलता वस्तुत: स्वयं की विफलता ही है! राम को, बुद्ध को या महावीर को ऊपर नहीं ओढ़ा जा सकता! जो ओढ़ लेता है, उसके व्यक्तित्व में न संगीत होता है, न स्वतंत्रता, न सौंदर्य, न सत्य!
परमात्मा उसके साथ वही व्यवहार करेगा, जो स्मार्टा के एक बादशाह ने उस व्यक्ति के साथ किया था जो बुलबुल-जैसी आवाजें निकालने में इतना कुशल हो गया था कि मनुष्य की बोली उसे भूल ही गई थी! उस व्यक्ति की बड़ी ख्याति थी और लोग, दूर-दूर से उसे देखने और सुनने जाते थे! वह अपने कौशल का प्रदर्शन बादशाह के सामने भी करना चाहता था! बड़ी कठिनाई से वह बादशाह के सामने उपस्थित होने की आज्ञा पा सका! उसने सोचा था कि बादशाह उसकी प्रशंसा करेंगे और पुरस्कारों से सम्मानित भी! अन्य लोगो द्वारा मिली प्रशंसा और पुरस्कारों के कारण उसकी यह आशा उचित ही थी! लेकिन बादशाह ने कहा: महानुभाव, मैं बुलबुल को ही गीत गाते सुन चूका हूं, मैं आपसे बुलबुल के गीतों को सुनने की नहीं, वरन उस गीत को सुनने की आशा और अपेक्षा रखता हूं, जिसे गाने के लिए, आप पैदा हुए है! बुलबुलों के गीतों के लिए बुलबुलें ही काफी है! आप जाये और अपने गीत को तैयार करें और जब वह तैयार हो जाये तो आवें! मैंआपके स्वागत के लिए तैयार रहूंगा और आपके लिए पुरस्कार भी तैयार रहेंगे!
निशचय ही जीवन दूसरों की नक़ल के लिए नहीं, वरन स्वयं के बीज में जो छिपा है, उसे ही वृक्ष बनाने के लिए है! जीवन अनुकृति नहीं, मौलिक सृष्टि है!
🕊💚मिट्टी के दीये 💚🕊
Rajneesh Osho